बुधवार, 22 जनवरी 2020

AYURVEDA PULSE DIAGNOSIS

त्रिधातु और मल की विकृति से बीमारी की पहचान करते


नाड़ी की गति व बल से जांचते सेहत


आयुर्वेद से
शरीर में वात, पित्त व कफ त्रिधातु पाई जाती है। इनमें दोष की वजह से व्याधियां  उत्पन्न होती है। जिस स्पंदन की गति व बल के आधार पर धातु और मल की विकृति की पहचान करते हैं वह नाड़ी कहलाती है।

हमारे शरीर में वात, पित्त व कफ त्रिधातु पाई जाती है। इनमें दोष की वजह से व्यक्ति रोगग्रस्त हो जाता है। कलाई की धमनी की जगह नाड़ी देखी जाती है। जिस स्पंदन की गति व बल के आधार पर त्रिधातु और मल की विकृति की पहचान करते हैं वह नाड़ी कहलाती है। नाड़ी परीक्षण का सही समय सुबह होता है । इस  समय नाड़ियां सामान्य रूप से चलती है। पुरूष के दाएं व  स्त्री के बाएं हाथ की नाड़ी देखी जाती हैं।


60 से 90 सेकंड में नाड़ी जांचकर बीमारी की पहचान करते

06 जगह शरीर में ऐसी जहां से वैद्य मरीज का नाड़ी परीक्षण करते हैं।


ऐसे करते नाड़ी परीक्षण  
रोगी नहीं है उसकी नाड़ी की जांच सुबह छह से दस बजे के बीच करते हैं, और जो रोगी हैं उनका नाड़ी परीक्षण दस बजे के बाद कभी भी कर सकते हैं।

अंगूठे के बगल की अंगुली वात की नाड़ी होती है जो सांप की तरह चलती है।
उसके बगल में मध्यमा अंगुली पित्त की नाड़ी होती है जो मेढ़क की तरह
व उसके पास की अंगुली कफ की नाड़ी हंस की भाती चलती है। 

इन नाड़ियों की गति का भाव लघु-गुरू, साम-निराम, उष्णता या क्षीणता है।

अवयव नाड़ी से बीमारी की गंभीरता जांचते
अवयव नाड़ी (ऑर्गन पल्स) की जांच के लिए तीनों नाड़ियों के परीक्षण में उनकी गति व बल को विशेष रूप से देखते हैं। इससे अंग में बीमारी व गंभीरता की पहचान हो जाती है। अंग पर बीमारी का कितना प्रभाव है, यह जान सकते हैं। इससे रक्त में कॉलेस्ट्राल, हृदय की धड़कन की वास्तविक स्थिति जान सकते हैं।

यहां से भी परीक्षण
कलाई के अलावा स्पंदन शरीर के कई स्थानों पर महसूस किया जा सकता है। ग्रीवा (गर्दन), नासा नाड़ी(नाक), गुलफसंदी (टखना) व शंख नाड़ी (ललाट के पास) से भी परीक्षण करते हैं।

नाड़ियों के प्रकार व दोष

वात नाड़ी दोष
इससे सर्वाइकल, ऑस्टियो, आर्थराइट्सि और स्पॉन्डिलाइसिस की दिक्कत ज्यादा होती है।

पित्त नाड़ी दोष
गालब्लेडर में सूजन, लिवर संबंधी बीमारियां, पीलिया, सिरोसिस की पहचान होती है।

कफ नाड़ी दोष
इससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, टयूबरोकलोसिस, रक्त, एलर्जी, सांस संबंधी बीमारियों व बुखार आने पर जांच करते हैं।

पंचात्मक नाड़ी दोष: वात-पित्त-कफ की नाड़ी क्रमशः पांच-पांच प्रकार की होती है। पहला प्राणवायु, दूसरा उदान वायु, तीसरा समान वायु, चौथा अपान वायु व पांचवा ज्ञान वायु नाड़ी कहलाती है।
इससे रोग की गंभीरता, बीमारी की अवधि व तीव्रता की जानकारी करते हैं।

किस  समय करें नाड़ी परीक्षण, मन, बुद्धि व इंद्रिय समान अवस्था में हो
सामान्यतः खाली पेट नाड़ी का परीक्षण कराना चाहिए। व्यस्तता, तनाव, दैनिक क्रिया से पहले व बाद में, भूख ज्यादा लग रही हो, नींद आ रही हो, मेहनत करने के बाद तुरंत नाड़ी परीक्षण नहीं करवाना चाहिए।
नाड़ी परीक्षण से पहले मन, बुद्धि और इंद्रिय समान अवस्था में रहने चाहिए। शांत अवस्था में ही नाड़ी परीक्षण कराना चाहिए। सामान्यतः सुबह छह से 10 बजे के बीच नाड़ी परीक्षण अच्छा रहता है।




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