मधुमेह लाइलाज नहीं Diabetes is not incurable

मानव शरीर में कोई भी रोग हो जाना अभिशाप है - स्वस्थ रहना मनुष्य  का जन्मसिद्ध अधिकार है - 'रोगी शरीर' मानव की अस्वाभाविक अवस्था है जबकि 'स्वस्थ शरीर' मानव की नैसर्गिक स्थिति है।  अतः कोई रोग होना प्राकृतिक अवस्था से  भिन्न है, असामान्य अवस्था है| कस्टप्रद होना स्वाभाविक है मधुमेह रोग (शुगर की बीमारी) आज समाज में प्राय: देखने को मिल रहा है। यधपि यह अमीरों का रोग है जो खाते तो है पर पचाने की चिंता नहीं करते। परिश्रम उनके जीवन से पलायन कर गया है।  आराम की जिंदगी बिताने वाले निष्क्रिय धनाढ्यों का रोग है-मधुमेह।
     आज डायबिटीज बीमारी का भारत में प्रसार खतरनाक स्तर पर है और इसके नुकसान अनगिनत है अंतरास्ट्रीय मधुमेह परिषद् ने भारत को "मधुमेह राजधानी" का दर्जा दिया है और 2020 तक यह स्थिति और विस्फोटक हो सकती है|
    इस स्थिति को  देखते हुए इस पर यह लेख लाखों करोड़ों लोगों के लिए हितकारी होगा। इसमें बताये गए तरीकों से इस रोग पर काबू ही नहीं जड़ से समाप्त किया जाना संभव होगा। यह अब वैज्ञानिक भी मानने लगे है -
   यह बात याद होखे की किताब पढ़कर या टी. वी. देखकर योग शुरू न करें क्योंकि हर क्षमता अलग -अलग है।  कई व्यक्तियों को इससे नुक्सान भी हुआ है और ऐसे व्यक्ति योग को बदनाम करते नहीं चूकते।  इसलिए योगाभ्यास किसी कुशल योग गुरु के सनिध्य में करें सीखने के पश्चात ही स्वयं करें।
   व्यापक अध्ययन से पाया गया है की शहरी भारत में 4.57 फीसदी नागरिक डायबिटीज से पीड़ित हैं जबकि गावों में इसका प्रतिशत 1.91  है।  इसका मुख्य कारण शहरों में अपेक्षाकृत अमीरी रहन-सहन, शहरीकरण, खान-पान की अव्यवस्था, टी.वी. का चलन, प्रदूषण, मानसिक चिंताएं, भागमभाग की जिंदगी है।
 "भारत के मधुमेह रोगियों में युवाओं की संख्या बढ़ने से  चिकित्सक चिंतित है।" तेजी से बदलती जीवन शैली और शारीरिक कसरत का अभाव शहरी भारत में इस महामारी को न्यौता दे रहा है।

मधुमेह होने के मुख्य कारण  (जोखिम  घटक )

1 . तनावयुक्त जीवन- आज की भोगवादी संस्कृति ने धनोपार्जन की लालसा को बेहद बढ़ा दिया है। इसके कारण उसको तनाव व् चिंता  ने जकड लिया है।  अत्यधिक  क्रोध, भय तथा चिंता से मानव शरीर की चयापचय प्रणाली गड़बड़ा जाती है और ग्लूकोज का ऊर्जा में परिवर्तन होना रुक जाता है तथा वह मधुमेह का रोगी बन जाता है। तनाव का कुप्रभाव अन्तर्स्रावी ग्रंथियों की कार्य प्रणाली, तंत्रिका तंत्र में असंतुलन रोग-प्रतिकारक शक्ति में कमी, मस्तिक पर कुप्रभाव आदि शरीर के हर अंग प्रत्यंग पर बुरा असर पड़ता है। डायबिटीज का 70 % कारण चिंता है।  डायबिटीज के लिए चिंता - चिता का काम करती है।  यह सिद्ध हो चूका है कि 80 % रोगों में मनोकायिक कारण मुख्य होता है।  चिंता उसमें प्रमुख स्थान रखती है।  यह डायबिटीज का मुख्य कारण है।

 2. खानपान की अव्यवस्था-आज मनुष्य स्वास्थ्य के लिए कम वरन स्वाद  के कारण अधिक  खा रहा है। प्रकृति प्रदत्त आहार को छोड़कर अधिक मीठी, ताली हुई चीजे, फ़ास्ट फ़ूड, अधिक मसालेदार तथा       वसायुक्त  भोजन, कोल्ड्रिंक्स तथा शराब  का प्रयोग  करता जा रहा है। इस भोजन से असीमित ग्लूकोस बनता है।  जिसका शरीर अवशोषण नहीं कर पाता तथा ऊर्जा में परिवर्तन नहीं  होता है। यह मधुमेह का दूसरा प्रमुख कारण  बनता है।

3. मोटापा-अधिक वजन के कारन शरीर में इन्सुलीन की मांग बढ़ जाती है।  मोटे व्यक्तियों में शरीर की कोशिकाओं  पर  इंसुलिन का प्रभाव कम होता है। इसके कारण शरीर में रक्तान्तर्गत शुगर की मात्रा बाद जाती है और वह आसानी से डायबिटिज का मरीज बन जाता है।  कठोर श्रम करने वालों में शायद ही यह पाया जाता है ; जबकि अफसरों, उद्योगपतियों और व्यापारिक वर्ग में ज्यादा पाया जाता है।

4. गलत जीवनशैली-न सोने के समय न जगाने के समय  का पता, न खाने का कोई समय, होटलों में खाना पीना, शराब व मांस का सेवन तथा अन्य गलत बातों से जिंदगी अस्त-व्यस्त रहती है। शरीर ठीक से कार्य नहीं कर पाता उसमें कमजोरी आ जाती है और पाचन गड़बड़ा जाता है। सब अंग ठीक से कार्य नहीं कर पाते और इस तरह डायबिटिज का संक्रमण शीघ्र हो जाता है। यह डायबिटीज होने का चौथा मुख्य कारण है।

5. अकर्मण्यता या आराम तलबी जीवन-आज आराम के साधन अधिक उपलब्ध हैं जिसमें हमें किसी भी प्रकार के शारीरिक श्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती है।  हम श्रम से दूर भाग रहे हैं तथा आराम तलबी बन गए हैं। फलस्वरूप शरीर में शर्करा का असंतुलन हो जाता है।

6.  आनुवांशिकता- मधुमेह का एक कारण रोग का पितृवंश या मातृवंश से विरासत में मिलना हैं अगर दादा-दादी, माता-पिता अथवा नाना-नानी अथवा पितृ व मातृ में किसी को यह रोग होता है तो संतानों में यह रोग हो सकता है इसकी 50 प्रतिशत संभावना होती है।

योग द्वारा उपचार 
यह प्रमाणित हो चुका है कि डायबिटिज शारीरिक से ज्यादा मनोकायिक रोग है। एलोपैथी चिकित्सा पद्धति मनोकायिक व्याधियों एवं जीर्ण रोगों के निवारण में विफल हो गई है, क्योंकि  वे रोगी के शूक्ष्म शरीर के तल को स्पर्श नहीं कर सकती है। हम इस भौतिक शरीर से बहुत कुछ अधिक है। 
  हमें स्मरण रखना चाहिए कि दमा, मधुमेह अथवा अन्य मनोकायिक व्याधियों के उपचार या निवारण के लिए हमें बाह्य शारीरिक लक्षणों के परे जाकर देखना चाहिए। भावनात्मक दमन अथवा भावनात्मक असंतुलन, मानसिक चिंता, अवसाद और आतंरिक उथल-पुथल पर भी हमें गौर करना चाहिए और इस हेतु मन की गहराइयों की जानकारी रखने वाले  विशेषज्ञ की आवश्यकता होगी। योग द्वारा हमें अपनेपन तथा अन्य जनों के मन को समझने में अच्छी सहायता प्राप्त होती है।  
   इसमें संदेह नहीं कि दमा और मधुमेह में योगापचार प्रभावकारी है। चिकित्सकों को यह स्मरण रखना चाहिए कि मनोकायिक रोगों के निदान में एलोपैथी अधिक कुछ नहीं कर पाती। वह रोगी को पूरी तरह स्वस्थ नहीं बना पाती है। एलोपैथिक औषधियों की अपनी सीमाएं है। वे सब कुछ नहीं दे सकती।  
  किसी भी रोग को समूल नष्ट करने के लिए जितनी आवश्यकता शारीरिक उपचार की पड़ती है; उसमे कहीं ज्यादा मानसिक उपचार की होती है। यही कारण है कि पूरी दुनिया की नजर आज ध्यान, योग, सुदर्शन क्रिया और प्रेक्षाधन जैसी यौगिक क्रियाओं पर टीकी हुई हैं। 
  डायबिटीज जैसी खतरनाक एवं दीर्घकालीन बीमारी से लड़ने के लिए हमें उन कारणों को जिसके कारण यह रोग होता है, उन्हें दूर करना होगा तभी हम इस बीमारी से हमेशा के लिए निजात पा सकते हैं।  
  एक बात विशेष ध्यान देने की यह है कि यह बीमारी एक बार पूर्णतया समाप्त हो भी जाए उसके बाद अगर ध्यान न दिया जाए तो बहुत शीघ्रता से वापिस भी आ जाती है। अतः उपरोक्त कदम रोग दूर करने में काफी गहनता से उठाने होंगे। ठीक होने के बाद जिंदगीभर 35-40  मिनट का कार्यक्रम रखना होगा जिसका उल्लेख हम इस लेख के अंत में करेंगे।  
  चूँकि डायबिटीज रोग मनोकायिक ज्यादा है, अतः इसका पूर्ण इलाज अन्य पैथिक में नहीं है, इसलिए कहा जाता है कि यह रोग लाइलाज है, जिंदगी भर दवाईयां खाते रहो। शरीर के साथ ही इसका अंत होता है। लेकिन योग में सर्वांगीण स्तर पर इलाज होता है। अतः मधुमेह लाइलाज नहीं है। 











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