12 जनवरी: स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष


महान प्रेरणास्त्रोत: स्वामी विवेकानंद की जीवनगाथा

"हम वही बनते हैं, जो हम सोचते हैं। इसलिए हमेशा ऊंचा सोचो।"

"ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। हमें केवल अपनी आँखों से अज्ञान का पर्दा हटाना है।"


स्वामी विवेकानंद का नाम सुनते ही एक ऐसी शख्सियत की छवि उभरती है, जिसने भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर गौरवान्वित किया। उनकी बातें आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। आइए, उनकी प्रेरणादायक जीवन यात्रा और महान उपलब्धियों को जानते हैं।


स्वामी विवेकानंद का जन्म और प्रारंभिक जीवन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ। उनकी मां भुवनेश्वरी देवी ने उन्हें बचपन में "वीरेश्वर" नाम दिया, लेकिन परिवार और समाज उन्हें प्यार से "नरेन्द्रनाथ" कहकर बुलाने लगा। बचपन से ही नरेन्द्र का मन अत्यंत तेजस्वी और उनकी सोच गहरी थी। उनके चेहरे और हावभाव से एक दिव्य आभा झलकती थी।

नरेन्द्र बचपन में शरारती थे, लेकिन उनकी मां ने उन्हें एक अनूठे तरीके से शांत करना सीखा—शिव-शिव का उच्चारण करते हुए उनके ऊपर जल छिड़कने से वे तुरंत शांत हो जाते। यह माना जाता है कि उनमें शिव का अंश समाहित था। नरेन्द्र को रामायण और महाभारत की कहानियां सुनना बेहद पसंद था, और वे अक्सर कोचवान बनने का सपना देखा करते थे।


स्वामी विवेकानंद का शिक्षा और दर्शन की ओर रुझान

नरेन्द्र के पिता उन्हें पाश्चात्य सभ्यता और अंग्रेज़ी शिक्षा से प्रेरित करना चाहते थे, लेकिन नियति ने उन्हें भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म को विश्व मंच पर प्रतिष्ठित करने का कार्य सौंपा था। उनकी गहरी रुचि व्यायाम, कुश्ती, और क्रिकेट जैसी गतिविधियों में थी, लेकिन उनका असली जुनून सत्य और ईश्वर को खोजना था।

उनकी इसी खोज ने उन्हें रामकृष्ण परमहंस के पास पहुंचाया। पहले नरेन्द्र ने परमहंस जी के विचारों को तर्क के आधार पर परखने का प्रयास किया, लेकिन उनके दर्शन और स्नेह से प्रभावित होकर उन्हें गुरु मान लिया। रामकृष्ण परमहंस के सान्निध्य में नरेन्द्र को आत्मसाक्षात्कार हुआ। 25 वर्ष की आयु में उन्होंने संन्यास धारण कर लिया और "स्वामी विवेकानंद" के रूप में विश्व को नई दिशा देने निकल पड़े।


शिकागो धर्म संसद और विश्व मंच पर पहचान

सन 1893 में, स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की विश्व धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उस समय भारत के लोग यूरोप में उपेक्षा का सामना कर रहे थे, लेकिन स्वामी जी ने अपनी पहली पंक्ति "सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका" से ही श्रोताओं का दिल जीत लिया। सभा करतल ध्वनि से गूंज उठी और विवेकानंद के विचारों ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

उन्होंने अपने व्याख्यान से सिद्ध किया कि हिंदू धर्म न केवल महान है, बल्कि वह सभी धर्मों को आत्मसात करने की शक्ति रखता है। उन्होंने भारतीय संस्कृति की ध्वजा को सात समुद्रों के पार लहराया। स्वामी जी के विचारों से हजारों लोग प्रेरित हुए और उनके अनुयायी बन गए।


स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार

स्वामी विवेकानंद के विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं। उनके कुछ प्रमुख उद्धरण हैं:

  1. "उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"
  2. "तुम अमर आत्मा हो, निर्भय बनो।"
  3. "ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। हमें केवल अपनी आँखों से अज्ञान का पर्दा हटाना है।"
  4. "जिस प्रकार नदियां समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी प्रकार हर धर्म ईश्वर तक पहुंचाता है।"
  5. "अगर धन दूसरों की भलाई के काम न आए, तो वह केवल बुराई का साधन है।"
  6. "हम वही बनते हैं, जो हम सोचते हैं। इसलिए हमेशा ऊंचा सोचो।"

आज के युवाओं के लिए संदेश

स्वामी विवेकानंद का जीवन और उनके विचार हमें सिखाते हैं कि सच्ची सफलता केवल मेहनत और आत्मविश्वास से ही मिलती है। उनके विचार हमें बताते हैं कि हमारा धर्म, संस्कृति, और परंपराएं हमें एक नई ऊंचाई तक ले जाने में सक्षम हैं।

आज, युवाओं को चाहिए कि वे स्वामी विवेकानंद के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएं। उनका संदेश है कि अपने भीतर छिपी अनंत शक्तियों को पहचानो और एक ऐसा जीवन जियो, जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन सके।


डर पर विजय: स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी



स्वामी विवेकानंद बचपन से ही निडर और जिज्ञासु स्वभाव के थे। जब वे लगभग 8 वर्ष के थे, तब वे अक्सर अपने एक मित्र के घर खेलने जाया करते थे। उनके मित्र के आंगन में एक विशाल चंपक का पेड़ था, जो नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम) को बेहद पसंद था। वह पेड़ पर चढ़ना और उसकी डालियों पर झूलना उनका प्रिय खेल था।

एक दिन, नरेन्द्र उसी पेड़ की डाल पर झूल रहे थे। तभी उनके मित्र के दादाजी वहां आए। उन्हें डर था कि नरेन्द्र कहीं गिर न जाएं या पेड़ की डाल न टूट जाए। उन्होंने नरेन्द्र को सावधान करते हुए कहा,
“नरेन्द्र, इस पेड़ पर मत चढ़ा करो। अब से दूर ही रहना।”

नरेन्द्र ने मासूमियत से पूछा, “क्यों?”

दादाजी ने रहस्यमय अंदाज़ में कहा, “क्योंकि इस पेड़ पर एक भयानक ब्रह्मदैत्य रहता है। वह रात में सफ़ेद कपड़े पहनकर घूमता है और जो भी इस पेड़ पर चढ़ता है, उसकी गर्दन तोड़ देता है।”

नरेन्द्र यह सुनकर चौंके, लेकिन डरने के बजाय उन्होंने दादाजी से दैत्य के बारे में और सवाल पूछे। दादाजी ने गंभीरता से कहा, “वह बहुत ख़तरनाक है। उसकी बातों को हल्के में मत लेना।”

नरेन्द्र ने ध्यान से उनकी बातें सुनीं और बिना कुछ कहे वहां से चले गए। दादाजी यह सोचकर मुस्कुरा दिए कि बच्चा अब डर गया होगा।

लेकिन जैसे ही दादाजी आगे बढ़े, उन्होंने देखा कि नरेन्द्र फिर से उसी पेड़ की डाल पर चढ़कर झूलने लगे। यह देखकर नरेन्द्र के मित्र ने घबराते हुए चिल्लाया,
“अरे, तुमने दादाजी की बात नहीं सुनी? दैत्य तुम्हारी गर्दन तोड़ देगा!”

यह सुनकर नरेन्द्र हंस पड़े और बोले,
“डरो मत, मित्र! तुम कितने भोले हो। किसी की कही बात पर बिना सोचे-समझे यकीन क्यों करते हो? अगर दादाजी की बात सच होती, तो मेरी गर्दन अब तक टूट चुकी होती!”

यह घटना स्वामी विवेकानंद के निडर स्वभाव और तीक्ष्ण बुद्धि को दर्शाती है। बचपन से ही वे अंधविश्वासों को चुनौती देने और तर्कपूर्ण सोच को अपनाने में विश्वास रखते थे। उनकी यह विशेषता आगे चलकर उनके महान व्यक्तित्व की आधारशिला बनी।

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