मनुष्य के भीतर कई तरह के तनाव, बीमारीयां या आदतें होती हैं। डॉक्टर उनका इलाज करते हैं लेकिन ये ठीक नहीं होती। एक बुजुर्ग महीला जिसकी कमर के निचले हिस्से में बहुत दर्द रहता है। वह हमेशा गर्म पानी की थैली या कोर्सेट, यानी एक बड़ा सा बेल्ट लगाकर घूमती है। ओशो रिजार्ट में गहरे ध्यान के प्रयोग जिसमें कि अपने अचेतन मन में प्रवेश कर अपने शरीर और मन को देखा जाता है। तीसरे दिन उसके अंतर्मन में एक दुश्य उभरा। जब वह छोटी थी तब उसकी मां और उसकी नानी भी ऐसा ही बेल्ट लगाकर घूमती थीं। यह छोटी बच्ची उसे देखती रहती। जब वह बड़ी होती है तो उसकी कमर में भी वैसा ही दर्द रहने लगा, उसने वैसा ही बेल्ट लगाना शुरू किया जो मां और नानी लगाए रहतीं थी। डॉक्टरों ने बहुत इलाज किए जो नाकाम रहे। इस स्त्री को पता नहीं था कि उसने अपनी मां जैसा बनने की कोशिश में अनजाने उसका दर्द भी ले लिया था। इस दर्द का इलाज ध्यान ही था, उसकी अपनी जागरूकता और समझ कि मां और नानी जो बेल्ट इस्तेमाल कर रही थीं वह उनके लिए एक चिकित्सा थी। इस अहसास के साथ ही उसका दर्द कम होने लगा। धीरे-धीरे उसके शरीर में नई ताकत पैदा हुई। लेकिन उसके साथ एक और उपराध बोध भी था कि मैं दर्द से मुक्ति पाकर क्या मां का अनादर तो नहीं कर रही हूं? मां उसके भीतर दर्द के रूप में बसी हुई थी। लोग न जाने कितनी भ्रांतियां मन में पालते हैं और बीमारी का घर बनतें हैं। ओशो की मानें तो सत्त्र प्रतिशत बीमारीयां
मन में होती हैं, उनका इलाज वहीं किया जाना चाहिए।