अहसास (Realization)

अहसास (Realization)

श्री राम , लक्ष्मण एवं सीता मैया चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे,














राह बहुत पथरीली और कटीली थी !
की यकायक श्री राम के चारणों में कांटा चुभ गया !

श्रीराम रुष्ट या क्रोधित नहीं हुए , बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे !
बोले- "माँ,  मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे, क्या आप स्वीकार करेंगी ?"

धरती बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !"
प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है की जब भरत मेरी खोज में इस पथ से गुजरे, तो आप नरम हो जाना !
कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना !
मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव में आघात मत करना"

श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई !
पूछा- "भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ?
जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नहीं कर पाएँगे ?
फिर उनको लेकर आपके चित में ऐसी व्याकुलता क्यों ?"

श्री  राम बोले- "नहीं .... नहीं माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नहीं समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नहीं, उसके हृदय को विदीर्ण कर देगा !"

"ह्रदय विदीर्ण !! ऐसा क्यों प्रभु ?"
धरती माँ जिज्ञासा भरे स्वर में बोली !

"अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि .... इसी कंटीली राह से मेरे भैया राम गुजरे होंगे और ये शूल उनके पगों में भी चुभे होंगे !
मैया मरा भरत कल्पना में भी मेरी पीड़ा सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति मे आप कमल पंखुड़ियों सी कोमल बन जाना ...!!"

अर्थात 

" यदि  यह अहसास और ऐसा प्रेम वर्तमान समय में हो, तो ये धरती स्वर्ग बन जाए,
              कोई दुखी, परेशान ना हो, चरों ओर प्रेम और सुख -शांति हो !"
                                              " जय श्री राम " 



और नया पुराने