"युवाओं, आओ, देश की नवजागृति के लिए जुट जाओ"

"युवाओं, आओ,  देश की नवजागृति के लिए जुट जाओ" 
("Youth, come, get ready for the country's awakening")
स्वामी विवेकानंद अपने समय से कितने आगे थे, यह उनके पत्रों से व्यक्त होता है।  वे जात-पात और भेद-भाव से मुक्त भारत देखना चाहते थे।  गुरु भाइयों को समय-समय पर लिखे उनके पत्रों में यही भावना प्रकट होती है। उनके ये विचार 21वी सदी के भारतियों के व्यवहार पर भी बहुत हद तक लागु होते हैं। 
"युवाओं, आओ,  देश की नवजागृति के लिए जुट जाओ" 
मनुष्य बनो।  कूपमंडूकता छोड़ो। देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं। 
ओरिएंटल होटल, याकोहामा 10 जुलाई 1883
"प्रिय आलासिंगा, 
बालाजी एवं मेरे मद्रासी मित्र,
      यहाँ मैंने बहुत से मंदिर देखे। प्रत्येक मंदिर में कुछ संस्कृत मंत्र प्राचीन बंग लिपि में लिखे हुए हैं। अपनी उन्नति करने का आधुनिक जोश पुरोहितों तक में प्रवेश कर गया है। जापानियों के विषय में जो कुछ मेरे मन में है। वह सब मैं इस छोटे से पत्र में लिखने में असमर्थ हूँ। मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ट संख्या में हमारे युवकों को चीन और जापान आना चाहिए। जापानी लोगों के लिए आज भारत वर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्न राज्य है। और तुम लोग क्या कर रहे हो ?.............  जीवनभर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवास करने वालों तुम लोग क्या हो? आओ, इन लोगों को देखो और उसके बाद लज्जा से अपना मुँह छिपा लो।  सठियाई बुद्धि वालों  तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाती चली जाएगी। अपनी खोपड़ी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरंतर वृद्धिगत कूड़ा-कर्कट भरे बैठे, सैकड़ों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करने वाले,  युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो ? ....... यूरोपीय लोगों के मस्तिष्क में निकली हुई इधर-उधर की बातों को बेसमझ दुहरा रहे हो। मुंशीगिरी के लिए या बहुत हुआ तो वकील बनने के लिए जी-जान से तड़प रहे हो-ये ही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा है।
   आओ! मनुष्य बनो! उन पाखंडी पुरोहितों को जो सदैव उन्नति के मार्ग में बाधक होते हैं , ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा। उनके हृदय कभी विशाल न होंगे। उनकी उत्पत्ति तो सैकड़ों वर्षों के अंधविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। पहले पुरोहिती पाखंड को जड़-मूल से निकाल फैंको। आओ मनुष्य बनो।  कूपमंडूकता छोड़ो और बाहर दृष्टि डालो। देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं। क्या तुम्ह मनुष्य से प्रेम है ? क्या तुम्ह अपने देश से प्रेम है ? यदि हां, तो आओ, हम लोग उच्चता व उन्नति के मार्ग में प्रयत्नशील हों। पीछे मुड़कर देखो ही मत।  केवल आगे बढ़ते जाओ। भारत माता कम से कम एक हजार युवकों का बलिदान चाहती है। मस्तिक वाले युवकों का, पशुओं का नहीं।  परमात्मा ने तुम्हारी निश्चेष्ट सभ्यता को तोड़ने के लिए ही अंग्रेजी राज्य को भारत भेजा है। मद्रास ऐसे कितने निःस्वार्थ और सच्चे युवक देने के लिए तैयार है, जो गरीबों के साथ सहानूभूति रखने के लिए, भूखों को अन्न देने लिए और नवजागृति का प्रचार करने के लिए प्राणों की बाजी लगाकर प्रयत्न करने को तैयार है और साथ ही उन लोगों को, जिन्हे तुम्हारे पूर्वजों के अत्याचारों ने पशुतुल्य बना दिया है, मानवता का पाठ पढ़ाने को अग्रसर होंगे ?
तुम्हारा 
विवेकानंद 


और नया पुराने